यह सभी जानते हैं कि सरकार के पास जो पैसा है वो जनता का है ।सरकारें उस पैसे का इस्तेमाल इस तरह करतीं है मानों वो उनका व्यक्तिगत हो।किसी व्यक्त की मृत्यु यदि दुर्घटनावश हो जाती है या किसी झगड़े में तो सरकारें पीड़ित व्यक्ति के परिवार को लाखों रूपये देनें का एलान शान सेकरती हैं जैसे वो व्यक्तिगत रूप से उस परिवार की मदद कर रहे हों।सरकार भूल जाती है जिस पैसे को वो बाँट रहे हैं वो जनता का है,फिर जनता से पूछे बिना उनका पैसा किसी को भी देने का कोई हक़ नहीं ।
मृत्यु पर पैसे बाँटना उसी भाँति है जैसे चोट लगने पर बच्चे को वहलाने के लिये चाकलेट देना ताकि उसका ध्यान चोट के दर्द से हट जाये।
अरे मदद करनी ही है तो उस परिवार को रोज़गार दो यदि वो परिवार का पोषक था तो,नहीं तो न्यायालय को अपना काम करनें दो।
केस न्यायालय पहुँचा ही नहीं सरकार ने निर्णय पहले ही सुना दिया मुआवज़ा देकर,फिर न्यायालयों व न्यायाधीशों की क्या आवश्यकता ?
इस पर चर्चा होनी चाहिये ?
मृत्यु पर पैसे बाँटना उसी भाँति है जैसे चोट लगने पर बच्चे को वहलाने के लिये चाकलेट देना ताकि उसका ध्यान चोट के दर्द से हट जाये।
अरे मदद करनी ही है तो उस परिवार को रोज़गार दो यदि वो परिवार का पोषक था तो,नहीं तो न्यायालय को अपना काम करनें दो।
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