Monday 14 December 2015

फ़र्ज़

मंगत अपनी बेटी व पत्नी के साथ राजपुर गाँव में रहता था ,उसके टोले में शेरा नाम का एक कुत्ता था ये नाम मंगत ने ही उसे दिया था ।शेरा लम्बा चौड़ा अच्छी जाति का कुत्ता था । मंगत की पत्नी बचा खुचा खाना शेरा को दिया करती थी इस कारण शेरा मंगत के दरवाज़े पर सुबह से शाम तक कई बार जाता था, शायद उसे उम्मीद रहती थी कि यहाँ उसे ज़रूर कुछ न कुछ खानें को मिलेगा , और एेसा होता भी था ।
                                                          एक सुवह मंगत रोज़ की भाँति अपनें खेत पर जाता है वो देखता है कि उसके खेत की मेड़ जो कि टूटी थी उस पर शेरा लेटा था ताकि खेत में जो पानी उसने लगाया था वो न वह जाए । मंगत शेरा को आबाज देता है, शेरा मुँह उठा कर उसको देखता है फिर निढाल होकर लेट जाता है। मंगत जल्दी जल्दी मेड़ को ठीक करता है ,इसके बाद वो प्यार से शेरा के सर पर हाथ रखता है ,शेरा का शरीर एकदम ठंडा था , वो उठ भी नहीं पा रहा था । मंगत अपना गमछा उसके ऊपर डालता है ,उसे गोद में उठानें की कोशिश करता है , लेकिन शेरा काफी बड़ा कुत्ता था,मंगत से वो नहीं उठता । मंगत दौड़ कर गाँव की तरफ़ आता है और लोगों को इकट्ठा करके बापस जाता है, लेकिन ये क्या शेरा मर चुका था ।
                आज भी शेरा की क़ब्र उसी मेड़ पर बनी है और मंगत वहाँ रोज़ कुछ देर ज़रूर बैठता है ।

Saturday 12 December 2015

असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है

कई बार एेसा होता है हमारे प्रयास सफल नहीं होते,हम बार बार असफल होते हैं । कितने लोग तंग आकर प्रयास करना छोड़ देते हैं, तो कुछ लोग डटे रहते हैं,अपने संकल्प के प्रति । उन्हे विश्वास होता है अपनी मज़बूत इच्छा शक्ति पर,अपनी योग्यता पर ।
यहाँ पर मैं दो बातें और रखना चाहूँगी  ----
1. प्रयास की दिशा
2. प्रयास का संकल्प
    यदि आपनें इन दोनों बातों को ध्यान में रखकर कार्य आरम्भ किया तो देर सवेर आपको सफलता मिलनी ही है । धैर्य भी यहाँ  पर अहंम भूमिका निभाता है, अताह धैर्य का परिचय आपको देना ही होगा । असफलता से डरना नहीं चाहिये हाँ सोचना अवश्य चाहिये कि क्या मेरा तरीक़ा ठीक है काम करनें का ? यदि नहीं तो रास्ता बदल कर देखो ?
     यहाँ मैं अपनी मित्र का वाक्या सुनाना चाहूँगी  जो कि PCS की तैयारी कर रही थी, 2 प्रयास उसने किये किंतु सफलता नहीं मिली फिर उसके एक परिचित ने उसे बोला, तुम IAS क्यूँ नहीं देती ? फिर उसने भी सोचा हाँ हर्ज क्या है ? मित्रों  सच मानों उसका IAS में चयन प्रथम प्रयास में ही हो गया । ये उसकी क़िस्मत के साथ साथ मेहनत भी थी जो उसे मिलनी ही थी इसलिये आत्मविश्वास के साथ ईमानदारी से कार्य करें । हो सकता है आपको उतनी बड़ी सफलता न मिले जो आपने लक्ष्य बनाया था । सफल होने के लिये समय की क़ीमत पहचाननी होगी ।फ़ालतू के कामों से स्वंय को दूर रखें, लक्ष्य पर दृष्टि रखें ।बस इतना ध्यान रखिये असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है ।

Friday 11 December 2015

भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे ?

भारतीय मुसलमानों को विचार अवश्य करना चाहिए कि उनके पूर्वज हिंदू थे या नहीं  ? इतिहास हमें बताता है कि मुस्लिम शासकों नें तलवार की नोंक पर धरमांतरण करवाये थे,जो लोग धर्म परिवर्तन कर लेते थे उन्हें मौत के घाट न उतार कर सोने चाँदी की अशर्फ़ियाँ दी जातीं थी ज़मीनें व रियासतें दी जातीं थीं। राजपूत पठान ब्रह्मण सैयद बन गये ।बचपन में मेरी एक मित्र फ.खान थी वो अक्सर कहती थी कि हम लोग राजपूत थे हमारे पूर्वजों को जवरदस्ती इस्लाम धर्म क़बूल कराया गया यदि वो एेसा नहीं करते तो उन्हें मार दिया जाता ।
      ये सोचनें का विषय है कि कितने मुसलमान,मुस्लिम शासकों के साथ भारत पर आक्रमण करनें के लिये आये होंगें ?
    सोचिये ????

             अपनी सेना को सशक्त करने के लिये जोरजबरदस्ती से हिंदुओं को मुसलमान बनाया गया ,सेना मे भरती किया गया। सोचिये ,आज की तारीख़ में जितनें मुसलमान भारत में हैं क्या इन सबके पूर्वज बाहर से आये थे ? नहीं आप सब यही के हो,जो थोड़े बहुत बाहर से आये थे वही लोग पूरे मुस्लिम समुदाय को भड़काने का काम करते हैं, क्यों कि वो यहाँ के नहीं हैं। 

वो भारत को अपना देश नहीं मानते,इसलिए उनके दिलों में इतनी दुरभावनाएं हैं,  किंतु अाप सब यहीं के थे , यही के हैं  और यहीं के रहोगे , बस पहचाननें की देर है । 

भारत और उसके मोती

भारत विविधताओं से भरा,आशाओं से लवरेज वह देश है,जहाँ विभिन्न संस्कृतियाँ एक साथ फलती फूलती हैं,यही वो संस्कृतियाँ हैं जो भारत की सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं।इन्हीं सब ख़ूबियों के कारण भारत की स्थित विश्व के देशों में सर्वोपरि है।जहाँ इतनी विविधताएँ हों,जहाँ इतनें धर्म हों,जहाँ इतनी संस्कृतियाँ हों,जहाँ इतने पहनावे हो,जहाँ इतने खानपान हो,जहाँ इतनी बोलियाँ हो,वहाँ कभी कभार कुछ घटनाएँ होना स्वाभाविक है ।भारत एक विशाल संयुक्त परिवार है।परिवार में झगड़ा होनें पर सदस्य घर छोड़ कर नहीं जाते,अपनें घर की बुराई पड़ोस में जाकर नहीं करते अपितु परिवार के मुखिया से विचार विमर्श करते हैं,समस्या का समाधान निकालते हैं,ये हमारे संस्कार हैं,इनको बनाये रखना हम सब का दायित्व है।

    हिंदू,मुस्लिम, सिक्ख, इसाई,बौद्ध, जैन ,पारसी ये सब माला के वो मोती है जिन को पिरो कर ही भारत रूपी माला का गठन होता है।

Thursday 10 December 2015

असहिष्षुणता ?????

कुछ लोग कह रहे हैं कि देश  में असहिष्षुणता बढ़ गई है यहाँ रहना मुश्किल हो गया है।जो लोग ये बातें कर रहे हैं वो कोई आम या साधारण लोग नहीं हैं,बड़े -बड़े साहित्यकार,बुद्धिजीवी ,जनता के आदर्श व हीरो है इन लोगों को असहिष्षुणता तब नहीं दिखाई दी,जब संसद पर आतंकियों ने हमला किया,ताज पर आक्रमण किया,मुम्बई में बम ब्लास्ट किया,मुज़फ़्फ़रनगर में घटना घटी,पंजाब जला,आसान जला,निर्भया काण्ड हुआ,इतनी दिल दहलाने वाली घटनायें हुईं तब किसी नें कोई पुरस्कार वापस नहीं किया ,किसी को माहौल ख़राब नहीं लगा ?अचानक ये असहिष्षुणता का अलाप क्यूँ  ?

जनता का पैसा

यह सभी जानते हैं कि सरकार के पास जो पैसा है वो जनता का है ।सरकारें उस पैसे का इस्तेमाल इस तरह करतीं है मानों वो उनका व्यक्तिगत हो।किसी व्यक्त की मृत्यु यदि दुर्घटनावश हो जाती है या किसी झगड़े में तो सरकारें पीड़ित  व्यक्ति के परिवार को लाखों रूपये देनें का एलान शान सेकरती हैं जैसे वो व्यक्तिगत रूप से उस परिवार की मदद कर रहे हों।सरकार भूल जाती है जिस पैसे को वो बाँट रहे हैं वो जनता का है,फिर जनता से पूछे बिना उनका पैसा किसी को भी देने का कोई हक़ नहीं ।
मृत्यु पर पैसे बाँटना उसी भाँति है जैसे चोट लगने पर बच्चे को वहलाने के लिये चाकलेट देना ताकि उसका ध्यान चोट के दर्द से हट जाये।
अरे मदद करनी ही है तो उस परिवार को रोज़गार दो यदि वो परिवार का पोषक था तो,नहीं तो न्यायालय को अपना काम करनें दो।
केस न्यायालय पहुँचा ही नहीं सरकार ने निर्णय पहले ही सुना दिया मुआवज़ा देकर,फिर न्यायालयों व न्यायाधीशों की क्या आवश्यकता ?
इस पर चर्चा होनी चाहिये ?

Wednesday 9 December 2015

राजनीति देश सेवा है,व्यवसाय नहीं

राजनीति वो क्षेत्र है जिसमें समाज सेवा का आपको भरपूर अवसर मिलता है,लेकिन राजनीति समर्पण चाहती है -देश के प्रति ,प्रदेश के प्रति ,अपने शहर के प्रति ।यदि आप की प्रकृति व आचार-विचार में सेवा भाव है और आप में अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कहने की योग्यता है तभी आपको राजनीति में क़दम रखना चाहिये।
        राजनीति को प्रोफ़ेशन नहीं समझना चाहिये और न ही बपौती ।सेलरी सुविधायें राजनैतिक लोगों को नहीं लेनी चाहिये,इससे ये सुनिश्चित हो जायेगा कि जो सच मे देश सेवा करना चाहेंगे वही राजनीति में आयेंगे । सांसद व विधायकों  को मकान ,स्वास्थ्य सेवायें,बच्चों की पढ़ाई लिखाई व खानेपीने की वस्तुयें  सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाये ।रिटायरमेंट की आयु भी निश्चित हो।१८ वर्ष की आयु के पश्चात ही राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले सकेंगें ।१० वर्ष तक आप जिस क्षेत्र से हैं वहाँ काम करें,उसका विवरण निर्वाचन आयोग को दे तत्पश्चात आप चुनाव में खड़े होने योग्य समझे जायें ,इससे बहुत फ़ायदे होंगें एक तो क्षेत्र की जनता आपको जानेगी समझेगी आप उनकी परेशानियों को समझ सकेंगें ,क्या-क्या समस्याएँ हैं ?आपको पहले से पता होंगीं ।२८ वरष की आयु तक शिक्षा पूरी हो जायेगी।
ग्रेजुएट होना विधायक व सांसद के लिये अनिवार्य किया जाये। गाड़ियों की जो सुविधायें नेताओं को मिलती हैं उन्हें बंद किया जाये।सरकार की तरफ़ से बड़ी बसें चलाई जाये जोकि मंत्रियों को उनके आवास से लायें,इससे संसद भवन में सांसदों की उपस्थित बढ़ेगी ।यदि क्षेत्र का दौरा करना हो तो सरकार को पत्र लिख कर गाड़ी माँगे व पूरा ब्यौरा सरकार को प्रेषित करें,इससे पारदर्शिता बढ़ेगी । गाड़ियों की खपत कम होगी पेट्रोल भी बचेगा।
इस तरह जो लोग कमाई करने अपना व अपने मित्रों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में आते हैं उनका आना बंद हो जायेगा।स्वच्छ व ईमानदार छवि वाले लोग इस क्षेत्र मे आयेंगें और देश की उन्नति होगी ।

ज़िद्दी मक्खी

लोग चींटी के परिश्रम का उदाहरण देकर लोगों को परिश्रम। का पाठ पढ़ाते हैं,किंतु आज मैने एक ज़िद्दी मक्खी को देखा ,मैं अपनी टेवल पर कुछ काम कर रही थी एक मक्खी वार वार आकर मुझे परेशान कर रही थी,मैं उसे वार वार भगाती किंतु वो एक मिनट बाद फिर आ जाती।कभी वो पेन पर बैठती तो कभी मेरे वालों पर,मैं जब काफी परेशान हो गई तो मैने सोचा इसे किताब से मार दूँ पर मेरे अंतर्मन ने मुझे एेसा करने से रोंका,मैने काम करना बंद कर दियाऔर उसको देखने लगी वो मेरे आसपास उड़ती और दोबारा बापस मेरे हाथ ,बाल या चेहरे पर ही बैठने का प्रयत्न करती।सच उसकी लग्न व हिम्मत की मैं दाद देतीं हूँ ,वो अपने लक्ष्य के प्रति कितनी दृढ़ प्रतिज्ञ थी,शायद वो मुझे चैलेंज कर रही थी कि तुम चाहे जितना प्रयत्न कर लो,मैं तुम्हारे ऊपर बैठ कर ही रहूँगी ,इसके लिये वो ख़तरा भी मोल ले रही थी अनुमानतह उसके मन में भय भी था कि कहीं मैं उसे मार न दूँ किंतु फिर भी वो अपने लक्ष्य से नहीं भटकी,अपनी ज़िद पर डटी रही,आख़िर में मुझे वहाँ से हटना पड़ा ।यहाँ मैं यही कहना चाहूँगी कि चाहे कितना भी मार्ग कठिन हो अपने लक्ष्य के लिये ज़िद करो ,मक्खी की भाँति ।