Monday 18 July 2016

आओ चलें बद्रीनाथ केदारनाथ (भाग २)

बद्रीनाथ भगवान के दर्शन करके अगले दिन प्रात: केदारनाथ के लिए निकल पड़ी । केदारनाथ धाम के मार्ग में विश्वनाथ मंदिर,गुप्तकाशी,मद्महेश्वर,महाकाली  व धारी माता का मंदिर पड़ते हैं ।केदारनाथ के लिए गौरीकुंड तक सड़क है, जहाँ तक गाड़ियाँ जाती हैं। वहीं से पैदल का रास्ता है, हाँ साथ ही फाटा से हेलीकाप्टर सेवा भी है। सरकारी व प्राइवेट दोनों। सरकारी हेलीकाप्टर पवनहंस सुवह ०७ बजे से दोपहर ०३ बजे तक ही चलते हैं किंतु प्राइवेट  शाम ०६ बजे तक उड़ते हैं ।हेलीकाप्टर से मात्र ०८ मिनट में केदारनाथ धाम पहुँच जाते हैं ।
हम लोगों नें सुवह की पहली फ़्लाइट की बुकिंग कराई थी इसलिए मैं सुवह ही केदारनाथ धाम पहुँच गई ।अत्यन्त मनोरम स्थल है ,चारों तरफ़ खूबसूरत हिमालय है उसके ऊपर वर्फ की सफ़ेद चादर बिछी है,अद्भुत अकल्पनीय है,सच कहूँ तो भोले नाथ नें बहुत ही सुंदर जगह अपनें लिए चुनी है, शुद्ध वायु, पावन वातावरण, भोलेनाथ, मंदिर, हिमालय, पण्डे, भक्त इसके अतिरिक्त वहाँ कुछ नहीं ।शीघ्र ही दर्शन हो गये ,मन प्रसन्न हो गया,पावन हो गया ऐसा भी कह सकते हैं । बापसी की फ़्लाइट में समय था मैनें देखा ----
बाबा केदारनाथ का मंदिर हिमालय की तीन चोटियों के बीच में है, यहाँ पाँच नदियाँ हुआ करतीं थीं - मंदाकिनी , मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्ण गौरी ।इनमें से कुछ नदियाँ विलुप्त हो गईं हैं । अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी नदी के दर्शन होते हैं, क्षीर गंगा भी रास्ते में दिख जाती हैं । क्षीर गंगा वो नदी है जिसे भीम खोज कर लाए थे। कहा जाता है महाभारत के पश्चात भगवान कृष्ण नें पाण्डवों से कहा युद्ध के दौरान जो हत्याएँ हुई  उनका जो पाप तुम लोगों को लग गया है उससे मुक्ति के लिए भोले नाथ से क्षमा प्रार्थना करो, इसलिए पाण्डव क्षमा प्रार्थना के लिये केदारनाथ जा रहे थे , रास्ते में द्रौपदी ने कहा खीर बनानें का मन है तब भीम वहाँ क्षीर गंगा लाए जोकि दूध के समान सफ़ेद है ।अभी भी वह एक पतली धार के रूप में दिखती है ।
गर्मी के मौसम में भी इतनें नज़दीक से हिमालय पर वर्फ को देखना सुखद अनुभूति थी । न तो हिमालय का इतना सुंदर फोटो आता है और न ही वीडियो वाक़ई बहुत खूबसूरत है हिमालय ।
भगवान केदारनाथ का मंदिर बड़े बड़े पत्थरों को जोड़ कर बनाया गया है जिस की रंगाई पुताई नहीं होती एेसा लगता है वहाँ शिव व सुंदरता के अतिरिक्त कुछ नहीं । बाबा केदारनाथ का मंदिर  ८५ फ़िट ऊँचा व ८० फ़िट चौड़ा है इसकी दीवारें १२ फ़िट मोटी हैं । पुराणों मे वर्णन है कि मंदिर का जीर्णोंद्धार अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने कराया था । मंदिर काफी समय तक वर्फ में दवा रहा ,  बाद में आदि शंकराचार्य नें पुन: इसका जीर्णोद्धार कराया ।
भगवान शंकर पाण्डवों से नाराज़ थे इसलिये उन्हे दर्शन देकर उनके पापों से उन्हे मुक्त नहीं करना चाहते थे ,इसलिए जब भोले नाथ को पता चला कि पाण्डव हिमालय आ गये हैं तो उन्होंने बैल का रूप धारण कर लिया और वहाँ विचरण कर रही गाय बैलों के साथ शामिल हो गये किंतु भगवान कृष्ण ने पहचान करा दी , तभी भगवान अंतर्ध्यान होने लगे किंतु पाण्डवों ने दौड़ कर उन्हे पीछे से पकड़ लिया, पीछे का वही भाग केदारनाथ में है । ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ  ।।मित्रों फ़्लाइट का समय हो गया और आप लोगों से विदा का भी। यदि आप लोगों को मेरी पोस्ट अच्छी लगी हो तो टिप्पणी देकर मार्गदर्शन अवश्य करें ।
जय केदारनाथ !


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