Monday 11 July 2016

शक्कर का गोला

कुछ दिनों पहले की बात है ,मैं लखनऊ से कानपुर अपने पति के साथ आ रही थी समय क़रीब रात के ९:३० बजा था । चाय पीने के लिए हम लोग एक ढाबे पर रूके ।मैं चाय का इंतज़ार कर ही रही थी कि तभी एक बच्चा मेरे पास आया जिसकी उम्र लगभग १० वर्ष होगी , दीदी शक्कर का गोला ले लो ,मैं ने कहा मुझे नही खाना तो वह बच्चा लगभग ज़िद करने लगा ,दीदी ले लो प्लीज़ केवल दस रूपये का है । नही मुझे नही खाना तुम जाओ । ले लो दीदी नहीं तो बाबू मारेंगे !
क्या कौन मारेगा ? दीदी मुझे १०० रूपये लेकर ही घर जाना है नहीं तो बाबू मुझे मारेंगें,देर हो रही है एक घंटा घर पहुँचने में भी लगेगा । मै अवाक् थी ,मुझे कुछ समझ नही आया ,मैने बच्चे को अपनें पास बुलाया उससे दो गोले लिये बीस रूपये देकर मैने कहा ये दोनों गोले तुम खा लो  मुझे अच्छा लगेगा ।पहले उसने मना किया फिर वह ख़ुश हो गया उसने लपक कर मेरे पैर छुए और कूदता हुआ हाथ हिलाता चला गया मैं उसे जाते हुए देख रही थी तभी मेरी चाय आ गई और मैं चाय पीने लगी ।दिमाग़ में अनेकों प्रश्न घूमनें लगे ,ये क्या था ? बच्चे की मजबूरी,दायित्व या परिवार की आवश्यकता ?

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