Saturday 9 July 2016

लड़की

लड़की होना क्या गुनाह है
पर लगता है ये सच है
उसके जन्म पर अक्सर
मातम मनाया जाता है
पहननें को भाई के कपड़े
खानें को जूठा दिया जाता है
पर किस्मत देखो उसकी
वो मरती नहीं ,ज़िंदा रहती है
और धीरे धीरे जब वो
बड़ी हो जाती है,संयोग
से पढ़ भी जाती है
अब तो ज़िंदगी और भी नर्क है
उसके ब्याह की उम्र हो गई है
पर कहीं बात न बननें पर
तानों से गल गई है
शरीर सूख कर काँटा हो गया है
ऊपर से घर के काम ने
दीमक का काम किया है
आज वो तीस पार कर गई है
पर लगता जैसे वो चालीस की हो
भाई ने जब कह दिया
शादी की उम्र नहीं रही
उसी पल उसने जीनें की आस छोड़ दी
रोज़ रोज़ की चिक चिक से
तंग आ गई वो
खानें के साथ सल्फाज खा गई वो
चिठ्ठी में सवाल पूछा है
लड़की होना क्या गुनाह है ?

      वंदना सिंह
(कापी राईट सुरक्षित)



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