Saturday 16 July 2016

आओ चलें बद्रीनाथ केदारनाथ (भाग १)

पिछले महिनें मुझे बद्रीनाथ केदारनाथ धाम की यात्रा का सौभाग्य मिला । टैक्सी द्वारा मैं ऋषिकेश होते हुए बद्रीनाथ धाम के लिए सुवह ५ बजे देहरादून से निकली ।टेडी मेडी सड़कों से होते हुए खूबसूरत वादियों के दर्शन करते हुए एक अलग ही तरह के आनंद को महसूस कर रही थी ।पहाड़ों ने मुझे सदैव ही आकर्षित किया है, किंतु इस बार की यात्रा मनभावन के साथ साथ उत्साह व उमंग से भरपूर भी थी कारण शायद यह था कि मैं काफी समय से बद्रीनाथ केदारनाथ धाम जाना चाहती थी और मुझे अब जाकर यह अवसर मिला था । बद्रीनाथ धाम को बैकुण्ठ धाम भी कहा जाता है ।यहाँ जाने के लिए हम टैक्सी से देवप्रयाग श्रीनगर रूद्रप्रयाग कर्णप्रयाग चमोली गोविंदघाट होते हुए बद्रीनाथ धाम जायेंगे । अब बहुत से लोगों के मन में सवाल होगा कि प्रयाग क्या है ? तो मैं उन्हें बताना चाहूँगी कि जहाँ दो नदियों का संगम होता है उसे प्रयाग कहते हैं ।उत्तराखण्ड में पाँच प्रयाग हैं -
१. देवप्रयाग
२. रूद्रप्रयाग
३. नंदप्रयाग
४. कर्णप्रयाग
५. विष्णुप्रयाग
देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम है जो आगे चल कर गंगा बनती हैं ।रूद्रप्रयाग में भगवान शंकर ने नारद मुनि को रूद्ररूप में दर्शन दिये थे यहाँ अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम है , नंदप्रयाग में अलकनंदा और नंदाकिनी का संगम है, कर्णप्रयाग में अलकनंदा और पिंडर नदी का संगम है, कर्ण ने यहाँ सूर्य की उपासना की थी इस कारण इस जगह का नाम कर्णप्रयाग पड़ा ।बद्रीनाथ धाम के पास विष्णुप्रयाग है जहाँ अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम है ।
चलो आगे बढ़ते है- मेरा टैक्सी ड्राइवर उत्तराखण्ड का ही था अत: वह २०१३ में आई आपदा को बीच बीच मे बताता था जो कि काफी दिल दहलाने वाली बातें थीं ।मैंने उसे कई बार टोका संभाल के चलो जल्दी नहीं ख़ैर ! हम लोग जब श्रीनगर पहुँचे तो सोंचा कुछ खाना खा लिया जाये , खाना खा कर थोड़ी दूर ही पहुँचे थे तभी ड्राइवर ने बताया यहाँ धारी माता का मंदिर है जिनकी बहुत मान्यता है ।२०१३ में जब आपदा आई थी तो कहते हैं वह धारी माता का प्रकोप था क्योंकि उनका स्थान परिवर्तन की कोशिश की गई थी,उसके ठीक ०२ घंटे बाद बादल फटे तबाही आ गई (असल में धारी माँ का मंदिर अलकनंदा नदी के बीच में है,अलकनंदा पर एक डैम बन रहा है मंदिर की बजह से कुछ परेशानी आ रही थी तो उसके इंजीनियर ने देवी के स्थान परिवर्तन का सुझाव दिया हालाँकि स्थानीय लोगों नें मना किया किंतु इंजीनियर नहीं माना) अब वहाँ पर पहले वाला तो मंदिर है ही माता को बापस वही बैठा दिया गया और वगल में ही एक विशाल मंदिर बन रहा है  । सचमुच अद्भुत है वह स्थल माँ की महिमा है ।
रास्ते में भविष्य बद्री मंदिर,वासुदेव मंदिर, व नृसिंह मंदिर पड़ते हैं नृसिंह भगवान का ये वो मंदिर है जहाँ  ०६ माह (शीतकाल में) बद्रीनाथ जी का निवास रहता है । ये मंदिर भी प्राचीन है । ये सब देखते हुए हम बद्रीनाथ धाम के काफी क़रीब पहुँच गये । रास्ते में ड्राइवर नें एक पर्वत दिखाया जो कि देखनें में एेसा लग रहा था जैसे वहाँ कोई सुंदरी सो रही हो , उस पर्वत को स्वीपिंग क्वीन कहा जाता है ।उसी पर्वत का चक्कर लगाते हुए हम बद्रीनाथ धाम पहुँच गये, शाम के लगभग ०६ बजे होंगें । होटल में सामान रख कर जल्दी जल्दी मंदिर पहुँचे । बहुत भीड़ थी । गर्म कुण्ड में पैर धोकर आगे बढ़े तो एक छोटा सा मंदिर था उसके अंदर एक पत्थर पर छोटे बच्चे के पैर उभरे हुए थे ,जब उसके विषय में पूछा तो पता चला कि ये भगवान विष्णु के पैरों की छाप है (यहाँ यह पता चला कि बद्रीनाथ धाम कैसे बना इसकी कथा पता चली, कहते हैं पूरा हिमालय तो भगवान शंकर का है तो फिर भगवान विष्णु वहाँ कैसे ? एक बार भगवान विष्णु एक छोटेबालक का रूप रख कर भगवान शंकर व माता पार्वती के पास गये और बोले ,प्रभू ये बहुत ही सुंदर स्थान है मैं कुछ दिन यहाँ रहना चाहता हूँ ,भोले नाथ पहचान गये उन्होंने मना किया तो वह माता पार्वती को मनाने लगे और उन्होंने माँ को मना लिया ,अनुमति देकर माँ स्नान के लिये चली गईं भोले नाथ भी कहीं चले गये तब भगवान विष्णु अपनें असली रूप में आ गये थोड़ी देर में जब भोले नाथ व माता बापस आईं तो देखा वहाँ भगवान विष्णु खड़े हैं, भगवान विष्णु ने कहा, प्रभू मुझे जन कल्याण के लिए यह स्थान चाहिए। इस तरह भगवान बद्रीनाथ वहाँ विराजे) दर्शन करके मैं बद्रीनाथ जी के द्वार पर पहुँची  बहुत ही भव्य व विशाल मंदिर है । वहाँ की शोभा अलौकिक है । भगवान की सुंदरता का वर्णन करना असम्भव है वह अद्भुत है , दर्शन करके असीम संतोष की अनुभूति हुई। बहुत ही अच्छा लग रहा था ।बद्रीनाथ एक क़स्बा बन गया है जहाँ बस स्टेशन ,होटल ,दुकानें, मकान, अच्छा ख़ासा मार्केट सब कुछ है ।लौटते में हम लोग मार्केट देखते हुए बापस होटल पहुँचे दिन भर की यात्रा ने थका दिया था किंतु दर्शन करके सारी थकावट दूर हो गई थी ।लेटते ही नींद आ गई, सुवह जल्दी उठना था क्योंकि केदारनाथ धाम के लिए निकलना था ।केदारनाथ धाम की यात्रा अगली पोस्ट में ।

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