Bindas2
Friday, 8 July 2016
सपना
सुखी जीवन की कल्पना,हर इंसान करता है
मैंने भी की, इसमें कुछ नया नहीं है
पर कल्पना के पंख पर बैठ कर
मैं जब उड़ रही थी,सपनें बुन रही थी
सपनों की पतंग ऊँची थी,डोर कच्ची थी
पता न चला कब टूट गई,मैं उठ कर बैठ गई
वंदना सिंह
(कापी राईट सुरक्षित)
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