Friday 17 February 2017

चेतक एक घोड़ा ही नही अपितु वीर सैनिक था

महाराणा प्रताप व अकबर की सेना के साथ जब हल्दी घाटी में युद्ध हुआ तब मुग़ल शासक की फ़ौज बडी व आधुनिक शस्त्रों से सुसज्जित थी । उसके सेनापति मान सिंह थे जो कि हाथी पर सवार थे । दोनों सेनाओं में लगभग ६ घण्टे युद्ध हुआ । महाराणा ने अपनें घोड़े को हाथी का मुखौटा लगा रखा था, मान सिंह को हाथी पर देख राणा ने चेतक को एड लगाई चेतक मान सिंह के हाथी के मस्तक पर चढ़ गया किंतु मान सिंह हौदे में छिप गया और उसका महावत मारा गया चेतक के मुखौटे में तलवार बंधी थी ,नीचे उतरते समय  चेतक का उस तलवार से पैर कट गया और महाराणा दुश्मनों से घिर गये परंतु उनके वफ़ादार सरदार झाला मान सिंह उन तक पहुँच गये और उन्होंने ज़बरदस्ती राणा का मुकुट अपनें सर पर रख कर अकबर की सेना को भ्रमित कर दिया और राणा को वहाँ से निकाल दिया ,चेतक महाराणा को वहाँ से घायल अवस्था में भी सुरक्षित स्थान  तक ले गया अंतत: उसकी मृत्यु हो गई । महाराणा ने उस का अंतिम संस्कार किया बाद में उसकी वहीं पर समाधि बनवाई , वह स्थान हल्दीघाटी से लगभग ५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।

माँ कामाख्या देवी व रहस्य

माँ कामाख्या देवी का मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के नीलांचल पर्वत पर स्थित है । यह सिद्ध मंदिर माँ शक्ति के ५१ शक्ति पीठों में से एक है।कहते हैं कि यहाँ पर माँ सती की योनि गिरी थी ( जब माता  सती ने अपने पिता के घर यग्य में अपने पति भगवान शंकर का अपमान देखा तब उन्होंने उसी यग्य में कूद कर आत्मदाह कर लिया था उसके पश्चात भगवान शंकर उनके जले हुए शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड मे घूम रहे थे अशांत थे उनके दुख को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता के जले हुए शरीर को काट काट कर अलग किया था ।माता को ५१ अंगों में काट कर अलग किया गया था वो अंग जहाँ जहाँ गिरे वो शक्ति पीठ बन गये) जिस कारण इन्हें कामाख्या कहा जाता है । इस मंदिर में मूर्ति के स्थान पर एक गढ्ढा है उसी की पूजा अर्चना होती है जिससे निरंतर पानी निकलता रहता है। जिस तरह माह में स्त्रियों को मासिक धर्म आता है ठीक उसी भाँति उस गढ्ढे से भी तीन दिन लाल रंग का पानी निकलता है उस दौरान मंदिर के पट बंद रहते हैं लेकिन जब मंदिर खुलता है तो भक्त लाल रंग के पानी को देखते हैं । यह एक रहस्य है जिसको कोई नही जानता ?
जय माता की 

Monday 13 February 2017

वोट किसे दें ???????

चुनाव का मौसम है , मतदाता काफी कनफ्यूज है कि वोट किस को दिया जाय ? मतदाता वोट देना चाहता है पर दिक़्क़तें   काफी हैं, जैसे- जिस पार्टी को वोट देना चाहता है उसका प्रत्याशी ठीक नहीं मसलन उसके ऊपर कई आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं , उसनें क्षेत्र का कोई विकास नहीं किया , अपने क्षेत्रवासियों की ज़रूरत पर मदद नहीं करता , इसी तरह की असंख्य बातें हैं , अब वह इस तरह के व्यक्ति को वोट नहीं देना चाहता परन्तु इसकी पार्टी अच्छी है उसको सरकार में लाना चाहता है फिर सोंचता है कि अगर मैं इस गलत उम्मीदवार को वोट देकर सरकार ले आता हूँ तो इस व्यक्ति के अत्याचार तो और बढ़ जायेंगे और ज़रूरत पड़ने पर कोई काम भी नहीं आयेगा , समस्या विकट है क्या करे ?????
दूसरी तरफ प्रत्याशी ठीक है उसको वोट देना चाहता है किंतु पार्टी ठीक नहीं , मतदाता किसी भी सूरत में उसकी पार्टी को सरकार के रूप में नहीं देखना चाहता , यहाँ भी कनफ्यूजन है क्या करे ?????
ऐसे बहुत से मतदाता हैं जोकि उपरोक्त समस्या से ग्रस्त हैं । वह सोंचते हैं कि क्या वोट देना जो होगा देखा जायेगा मेरा तो योगदान नहीं रहेगा गलत आदमी या गलत पार्टी को चुननें में । क्या ये समस्या का निदान है ?????

Friday 10 February 2017

हवाओं को पता न चले

फूलों से सीखा मैंने
देखो मुस्काना
हवाओं को पता न चले
तुम धीरे से आना
  गरम है घर की छत
  तुम पायल न छनकाना
  हाथों की चूड़ी को
  चूनर से ढक आना
हवाओं को पता न चले
तुम धीरे से आना
फूलों से सीखा मैंने
देखो मुस्काना
  खिड़की पर अपनी तुम
  बालों को सुलझाना
  बिंदिया चमके माथे पर
  लगा के काजल आना
हवाओं को पता न चले
तुम धीरे से आना
फूलों से सीखा मैने
देखो मुस्काना
  लहंगा चोली चूनर
  पहन के तुम आना
  पायल चूड़ी बिंदी काजल
  इनको भी ले आना
हवाओं को पता न चलें
तुम धीरे से आना
फूलों से सीखा मैंने
देखो मुस्काना !
-वंदना सिंह


  

Sunday 5 February 2017

चुनाव

यू .पी .का चुनाव हमेशा से खास रहा है, चाहे ग्राम प्रधान का चुनाव हो या ब्लाक प्रमुख या फिर एम .एल .ए .का चुनाव ,ख़ास होना चुनाव का स्वभाव है। सभी पार्टियाँ ज़ोर शोर से प्रचार में लगीं हैं , अपनी अपनी ख़ूबियाँ गिनवा रहीं हैं, वोटरों को रिझा रही हैं, तरह तरह के वादे कर रही हैं, यहाँ जनता मूक दर्शक बन कर चुप चाप सुन रही है , ऐसा नहीं कि वो कुछ जानती नहीं ,जी नही ,वह सब जानती है, अभी नेताओं के बोलने का समय है मतदान के दिन जनता बोलेगी और ये नेता मूक दर्शक बन उसकी ओर निहारेंगें । समय का फेर है जो कि समय चक्र की भाँति चलता ही रहता है । हमारा सौभाग्य है कि हम गणतंत्र देश के वासी हैं हमें वोट देने का अधिकार है इसलिए देशवासियों अपने मत का प्रयोग अवश्य करें ।अपने लिए ....,अपने प्रदेश के लिए ....,अपने देश के लिए ।
            जय हिंद !

Saturday 4 February 2017

रानी पद्मावती कौन थी ?

महारानी पद्मावती चित्तौड़ के महाराणा रत्न सिंह की पत्नी थी । वह अत्यंत खूबसूरत थी उनकी ख़ूबसूरती की चर्चा चारों तरफ थी । जब दिल्ली के शासक अलाउद्दीन ख़िलजी ने  रानी पद्मावती की सुंदरता के विषय में सुना तो वह उनको देखने के लिए बेताब हो गया , उसने अपनी इच्छा अपने मंत्रियों को बताई ,उन सब ने मिल कर एक योजना बनाई कि महाराणा रतन सिंह को मित्रता का संदेश भेजा जाय कि वह उनसे दोस्ती करना चाहते है किंतु बदले में उनकी पत्नी पद्मावती को देखना चाहेंगे । जब यह संदेश चित्तौड़ पहुँचा तो महाराणा की राजसभा में सभी ने इसका विरोध किया कि यह सम्भव नही किंतु कुछ मंत्रियों नें सुझाव दिया कि कूटनीति व राजनीति के तहत अगर उसकी मित्रता को ठुकरा दिया तो वो चित्तौड़ का शत्रु बन जायेगा जोकि राज्य हित में न होगा काफी विचार विमर्श के पश्चात यह रास्ता निकाला गया कि एक शीशा लगाया जाये और महारानी दूर से उसके सामने से निकल जायेंगीं और इस तरह ख़िलजी उन्हे देख लेगा और रानी को सामने भी नहीं आना पड़ेगा ,किंतु महारानी को इस तरह दिखाना सेनापति गोरा व उनके भतीजे बादल को स्वीकार नहीं था  और उन्होंने इसका विरोध किया ,किंतु उनकी नहीं सुनी गई जिससे वह नाराज़ हो कर सभा से चले गये । योजनानुसार रानी पद्मावती को शीशे में दिखाया गया, ख़िलजी रानी की सुंदरता को देखता ही रह गया उसनें आज तक ऐसी स्त्री नहीं देखी थी ।अब तो वह रानी को हर हाल मे हासिल करना चाहता था। उस दिन तो वह चला गया किंतु कुछ दिनों पश्चात उसनें महाराणा रतन सिंह को भोज पर बुलाया और उन्हे बंदी बना लिया इसके साथ ही एक संदेश चित्तौड़ भेजा कि यदि अपने राजा को सकुशल वापस चाहते हो तो रानी पद्मावती का डोला दिल्ली भेज दो नहीं तो तुम्हारे राणा का सर काट भेज देंगे । जब यह संदेशा चित्तौड़ पहुँचा तो राजपूतों की तलवारें खिंच गईं किंतु अब क्या किया जाये प्रश्न ये था ? महारानी पद्मावती ने गुप्तचरों को भेज कर पता लगवाया कि सेनापति गोरा कहाँ हैं ? पता चलते ही रानी वहाँ गई और सारा वृतांत सुनाया ,ये सब सुनकर सेनापति गोरा की भुजाएँ फड़कने लगीं आँखों में अंगार उतर आए और वह तत्काल महारानी के साथ महल आ गये। योजना बनाई ख़िलजी को संदेश भेजा कि रानी पद्मावती अपनी ७०० सेविकाओं के साथ आ रही है। ७०० डोली तैयार की गईं उनमें रानी व सेविकाओं की जगह वीर सैनिकों को बैठाया गया ,कहारो के भेष में सैनिक लगे इस तरह सेनापति गोरा व बादल अपनें वीर सैनिकों के साथ दिल्ली पहुँचे  ,ख़िलजी को संदेश भिजवाया कि रानी पद्मावती अपनी सेविकाओ के साथ आ गई है , किंतु उनकी शर्त है कि वह एक वार अपने पति से मिलना चाहती है उसके बाद वह ख़िलजी की सेवा में आ जायेंगीं, ख़िलजी तो यह जान कर ही वौरा गया कि रानी पद्मावती आ गई और उसने तुरंत आदेश दिया कि रानी को रतन सिंह से मिलवा दिया जाये इस तरह जब सेनापति महा राणा के सामने पहुँचे तो राणा की आँखों में आँसू आ गये और उन्होंने सेनापति गोरा को गले लगा लिया । राणा को सेनापति ने अपने कहार जोकि सैनिक थे के साथ वहाँ से बाहर निकाला किंतु ख़िलजी का सेनापति को भनक लग गई और उसने नगाड़े बज बा कर सैनिकों को सावधान किया फिर क्या था डोलियों से सैनिक निकल पड़े भयानक युद्ध हुआ जिसमें  सेनापति गोरा व बादल ने ख़िलजी की सेना को तब तक रोके रखा जब तक राणा रतन सिंह चित्तौड़ की सीमा में न पहुँच गये ,किंतु समय से समाचार न पहुँच पाने पर रानी को लगा कि योजना असफल हो गई तो उन्होंने १६००० हजार स्त्रियों के साथ जौहर ले लिया , ये अब तक का सबसे बड़ा जौहर था ।
अब प्रश्न ये है कि यदि कोई भी व्यक्ति इस गौरवशाली इतिहास के साथ छेड़छाड़ करके रानी पद्मावती को किसी मुसलमान शासक के साथ प्रेम प्रसंग दिखाये तो क्रोध आना स्वाभाविक है। यह हमारा गौरवशाली इतिहास है जहाँ वलिदान राजपूतों की परम्परा रही है, स्त्रियाँ उनका स्वाभिमान है ,उनकी आवरू हैं । उनके व्यक्तित्व के साथ छेड़छाड़ कदापि स्वीकार नहीं ।
- वंदना सिंह

Thursday 2 February 2017

फ़िल्म समीक्षा "क़ाबिल "

"क़ाबिल "-ऋतिक रोशन व यामी गौतम की वो फ़िल्म है जिसने इन दोनों के फ़िल्मी ग्राफ़ को ऊपर उठाया है, सबसे अधिक तारीफ़ के पात्र इसके डायरेक्टर संजय गुप्ता हैं ।ऋतिक एंग्री यंग मैन रूप में ज़बरदस्त लगे हैं । इस फ़िल्म में नायक व नायिका दोनों ही अंधे हैं इसके बावजूद वो कितनी सहजता से जीवन यापन कर रहे हैं वह देखने वाला है । शुरू में पता ही नहीं चलता कि वो अंधे हैं ,यही डायरेक्टर का कमाल है । फ़िल्म में ऋतिक ने हीरो वाले सभी काम किये ।उनकी पत्नी के साथ जो अन्याय हुआ,उसका विरोध करना,अन्याय के विरूद्ध लड़ना बिल्कुल रियल लगा कुछ भी बनावटी नही महसूस हुआ । संगीत की दृष्टि से भी फ़िल्म ठीक ठाक है । कहानी अच्छी है,अभिनय तो लाजवाब है, कुल मिला कर फ़िल्म अच्छी है ।

Wednesday 1 February 2017

बसंत

बसंत
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पेड़ों ने सूखे पत्तों को
हिला हिला कर गिरा दिया
नई कोंपलों ने डालों को
देखो नव जीवन दिया
प्रस्फुटित हो रही किरणों को
सूरज ने है नया किया
नई हवाओं नई फ़िज़ाओं
ने बसंत को नव बसंत किया

मखमली व्यारों ने
मधुमास का एहसास दिया
सुगंधित हो उठा वातावरण
सूखे पेड़ों को हरा किया
जीवन को जीने के लिए
नूतन प्रेम का पाश दिया
नई हवाओं नई फ़िज़ाओं
ने बसंत को नव बसंत किया ।
-वंदना सिंह
बसंत पंचमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ